जगजीत सिंह, मंडी धनौरा (अमरोहा)।यह कहानी ग्रामीण पृष्ठभूमि में एक विधवा मां के सफलतम संघर्ष को बयां करती है। बच्चों की सफलतम परवरिश के मामले में उसने इस दौर की गलाकाट प्रतियोगिता के बीच एक अति प्रेरक कामयाबी दर्ज की है। उसका मुकाबला बड़े-बड़े शहरों में बड़े-बड़े घरों के उन साधन संपन्न मां-बाप से था, जो अपने बच्चों को आइआइटी जैसे देश के सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी संस्थानों में पढ़ाकर सफल इंजीनियर बनाने चाहते हैं। इसके लिए वे अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। महंगे स्कूल, हर साजोसामान, महंगी कोचिंग और वे सारी सुविधाएं कुछ मुहैया कराते हैं, जो गलाकाट प्रतियोगिता में उनके बच्चे को सबसे आगे रख सके। ऐसे में अमरोहा के छोटे से कस्बेमें रहने वाली इस विधवा मां ने अपने दोनों बच्चों को न केवल इंजीनियर बनाया, बल्कि उनकी बिटिया तो आइआइटी मुंबई से लेकर जेनेवा की सर्न लैब तक जा पहुंची।
धनौरा से जेनेवा तक
अमरोहा, उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे धनौरा में रहने वाली अनीता अग्रवाल की बेटी नीलिमा ने तमाम बाधाओं को पीछे छोड़ एक ऊंचा मुकाम हासिल किया। जेनेवा, स्विटजरलैंड स्थित क्वांटम फिजिक्स के क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी लेबोरेटरी यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन (सीइआरएन) लैब में उसने वैश्विक शोध में हिस्सा लिया। इसी लैब में 27 किमी परिधि में फैली लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर नामक पाइपनुमा मशीन में गॉड पार्टिकल की खोज हुई थी। यहां अब भी ब्रह्मांडीय खोज से जुड़े विभिन्न शोध जारी हैं।
खाद की छोटी सी दुकान के बूते
नीलिमा के पिता संतोष अग्रवाल का कुछ साल पहले निधन हो गया था। इसके बाद परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी उनकी माता अनीता के कंधों पर आ गई थी। मां ने अपने खचोर्ं में कटौती कर खाद की छोटी सी दुकान के सहारे जैसे-तैसे जुड़वा बच्चों बेटा अभय व बेटी नीलिमा की पढ़ाई जारी रखी। बेटा जहां बीटेक कर गुड़गांव में नौकरी कर रहा है, वहीं बेटी की विज्ञान में बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए उसे कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी हरियाणा से बीएससी और फिर एमएससी कराया। इसके बाद भौतिक शास्त्र में शोध कार्य के लिए नीलिमा ने मुंबई आइआइटी में दाखिला ले लिया।
लेम्डा पार्टिकल पर किया शोध, पीएचडी
नीलिमा की वैज्ञानिक सोच से प्रभावित आइआइटी प्रबंधन ने उन्हें जेनेवा स्थित लेबोरेटरी में ब्रह्मांड की खोज अभियान का हिस्सा बनने का मौका दिया। यहां पर नीलिमा ने लेम्डा पार्टिकल का अध्ययन किया। यह पार्टिकल सैद्धांतिक रूप से अस्तित्व में था, लेकिन प्रायोगिक रूप से कोई वैज्ञानिक इसे नहीं ढूंढ पाया था। पांच साल में अपना शोध कार्य पूरा करने के बाद नीलिमा ने शोधपत्र मुंबई आइआइटी में जमा कर दिया है। जहां उन्हें पीएचडी की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
सहायक होगा शोध
नीलिमा बताती हैं कि उन्होंने प्रायोगिक रूप से लेम्डा अणुओं के अस्तित्व को सिद्ध किया है। इस कण के अध्ययन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के समय के पदाथोर्ं (क्वार्क, ग्लूऑन, प्लाच्मा) के गुणों की जानकारी करने में सहायता प्राप्त होगी। इससे ब्रह्मांड की उत्पत्ति के समय मौजूद पदार्थ को समझने में सहायता मिलेगी। नीलिमा बताती हैं कि इस लेबोरेटरी में अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, नाइजीरिया समेत विश्व के कई देशों से विज्ञान के छात्र शोध कार्य में लगे हैं।
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