नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। सऊदी अरब में यह दौर जबरदस्त बदलाव का है। लेकिन आज भी वहां पर मुसिल्म कट्टरपंथियों की कोई कमी नहीं है। यह सब तब है जब वहां पर लगातार महिलाओं के हक में कई फैसले लिए जा चुके हैं। इतना ही नहीं सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस के साथ काम करने वाली करीब 40 फीसद महिलाएं ही हैं। लेकिन इन सभी के बीच ऐसी महिलाओं की भी लंबी फेहरिस्त है जो कट्टरपंथियों को आईना दिखाने से पीछे नहीं हट रही हैं। इनमें एक नाम है ‘हलाह अल हमरानी’।
बेहद दिलचस्प है हलाह की कहानी
हलाह की कहानी बेहद दिलचस्प है। दिलचस्प इसलिए क्योंकि वह वो काम करती है जिसकी इजाजत देना मुस्लिम कट्टरपंथियों के लिए नामुमकिन है। इसकी वजह भी बेहद साफ है। कट्टरपंथी महिलाओं को जिस तरह से रखने के हिमायती रहे हैं वह पूरी दुनिया जानती है। लेकिन अब इनको महिलाएं मुंह चिढ़ा रही हैं। हलाह सऊदी अरब की एक मात्र महिला बॉक्सर है। वह कट्टरपंथियों के मुंह पर किसी जोरदार तमाचे से कम नहीं है। हलाह पिछले करीब 16 वर्षों से सऊदी अरब में महिलाओं को किक बॉक्सिंग की ट्रेनिंग दे रही है। हलाह अमेरिका में नेशनल अकादमी ऑफ स्पोट्स मेडिसिन से सर्टिफाइड बॉक्सर है।
बेहद दिलचस्प है हलाह की कहानी
हलाह की कहानी बेहद दिलचस्प है। दिलचस्प इसलिए क्योंकि वह वो काम करती है जिसकी इजाजत देना मुस्लिम कट्टरपंथियों के लिए नामुमकिन है। इसकी वजह भी बेहद साफ है। कट्टरपंथी महिलाओं को जिस तरह से रखने के हिमायती रहे हैं वह पूरी दुनिया जानती है। लेकिन अब इनको महिलाएं मुंह चिढ़ा रही हैं। हलाह सऊदी अरब की एक मात्र महिला बॉक्सर है। वह कट्टरपंथियों के मुंह पर किसी जोरदार तमाचे से कम नहीं है। हलाह पिछले करीब 16 वर्षों से सऊदी अरब में महिलाओं को किक बॉक्सिंग की ट्रेनिंग दे रही है। हलाह अमेरिका में नेशनल अकादमी ऑफ स्पोट्स मेडिसिन से सर्टिफाइड बॉक्सर है।
महिलाओं के लिए जिम चलाती हैं हलाह
हलाह सऊदी अरब के जेद्दा में महिलाओं के लिए खास जिम भी चलाती हैं जिसको उन्होंने फ्लैग का नाम दिया है। वह यहां पर महिलाओं को किक बॉक्सिंग के अलावा क्रॉस फिट समेत कई दूसरी चीजों की भी ट्रेनिंग देती हैं। इन सभी के पीछे हलाह का मकसद महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है। हलाह हमेशा से ही महिलाओं की बेहतर फिटनेस और उनकी हैल्थ की वकालत करती रही हैं। वह चाहती हैं कि उनके देश की महिलाएं आगे आकर किक बॉक्सिंग में देश को नई पहचान दिलाएं।
खेलों को महिला पुरुष के बीच बांटा नहीं जा सकता
महिलाओं के हक की बात करने वाली हलाह का कहना है कि खेल किसी भी रूप में किसी एक लिंग के लिए नहीं हो सकता है। इस पर सभी का समान रूप से अधिकार है। इसको पुरुष और महिला जानकर बांटा नहीं जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इस पर सिर्फ पुरुषों का अधिकार मानते हैं। हलाह के इन विचारों के पीछे कहीं न कहीं उनके पेरेंट्स का भी हाथ है। दरअसल, हलाह के पिता अमेरिकी हैं जबकि मां सऊदी है। दोनों ने ही हलाह को एक बेहतर वातावरण दिया है। हलाह के माता-पिता उसके काम को पूरा सपोर्ट करते हैं। हलाह ने जब किक बॉक्सिंग को ही अपना करियर बनाने की बात अपने पेरेंट्स के सामने रखी तो पहले पहल उनको थोड़ा सा झटका जरूर लगा लेकिन उन्होंने हलाह को आगे बढ़ने की पूरी छूट दी। झटका इसलिए था क्योंकि कट्टरपंथी समाज में इस राह पर चलना थोड़ा मुश्किल था।
पिता की भी खेलकूद में दिलचस्पी
हलाह के पिता खुद खेलकूद को तवज्जो देने वालों में से हैं। इंग्लैंड में उनकी अपनी एक पोलो टीम है। हलाह बताती हैं कि जब वह केवल 12 साल की थीं तब उन्होंने पहली बार इस तरफ कदम बढ़ाया था। उस वक्त उन्होंने किक बॉक्सिंग समेत मार्शल आर्ट और इससे मिलते दूसरे खेलों की तरफ अपना रुझान बढ़ाया था।
कराटे समेत ताईक्वांडो में मास्टर
साल दर साल उन्होंने न सिर्फ अपना प्रदर्शन बेहतर किया बल्कि किक बॉक्सिंग के अलावा कराटे, ताईक्वांडो और हकीतो भी सीखा। आज हलाह जापानी जू जित्सू में ब्लैक बेल्ट धारक हैं। हलाह की ऐजूकेशन की बात करें तो उन्होंने केलिफार्निया की यूनिवर्सिटी से वह पढ़ाई की है। यहां पर उन्हें सीखने को काफी कुछ मिला। अमेरिका जैसे खुले माहौल के बाद हलाह ने वापस सऊदी अरब लौटने का फैसला किया। हालांकि यहां पर न तो उनके लिए कोच ही थे और न ही वह माहौल जिसमें वह अपने सपनों को पूरा कर सकें। इसके बाद भी हलाह की मां ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने घर में ही जिम खोला और एक पर्सनल कोच भी रखा। दरअसल, हलाह जेद्दा में जो कुछ कर रही थीं और करना चाह रही थीं वहां के हिसाब से वह सबकुछ अजीब था। हलाह अब 41 वर्ष की हो चुकी हैं, लेकिन उनके जुनून में अब भी कोई कमी नहीं आई है।
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