फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में गठबंधन की जीत से उत्साहित विपक्ष जहां हर मुद्दे पर सरकार के खिलाफ गोलबंदी बरकरार रखना चाहता है और इसी नाते टीडीपी व वाइएसआर कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन देने की भी तैयारी है। वहीं भाजपा के सहयोगी टीडीपी ने राजग से नाता तोड़ लिया है। पार्टी ने शुक्रवार को इसकी घोषणा कर दी। जबकि दूसरी सहयोगी लोजपा ने भी उपचुनाव नतीजे पर चिंता जताते हुए भाजपा को आगाह किया कि सहयोगी दलों के साथ ससम्मान 2019 की रणनीति तय की जाए।
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा के मुद्दे पर वाइएसआर कांग्रेस के साथ चल रहे शह मात के खेल में शुक्रवार की सुबह ही टीडीपी ने राजग से बाहर जाने की घोषणा कर दी है। पहले इस बाबत बैठक शाम को होनी थी, लेकिन सदन के अंदर वाइएसआर कांग्रेस से पीछे न रहने का चिंता में यह फैसला कर लिया। यही नहीं लोकसभा के अंदर वाइएसआर से अलग सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया। शुक्रवार को लोकसभा के अंदर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत दूसरे विपक्षी दलों का जो रुख था वह साफ संकेत था कि टीडीपी और वाइएसआर कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव को उनका समर्थन है।
कांग्रेस व अन्य दलों के नेताओं ने औपचारिक रूप से भी घोषणा कर दी कि सोमवार को जब फिर से प्रस्ताव लाया जाएगा तो वह समर्थन देंगे। यह और बात है कि सरकार के लिए कोई समस्या नहीं है। खुद संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने भी कहा कि सरकार के पास पर्याप्त नंबर है। अकेले भाजपा ही बहुमत के पार है। जबकि सहयोगी दल भी साथ खड़े हैं। जाहिर तौर पर सरकार को कोई संकट नहीं है। लेकिन सहयोगी दलों ने सुर उंचा करना शुरू कर दिया है और भाजपा को उन्हें एकजुट रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना होगा।
लोजपा सदस्य चिराग पासवान ने सरकार को याद दिलाया कि टीडीपी रिश्ता तोड़ चुकी है, शिवसेना पहले ही 2019 का चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर चुकी है। दूसरी तरफ सोनिया गांधी 20 दलों को इकट्ठा कर रही हैं। ऐसे में जरूरी है राजग भी एकजुट होकर रणनीति तय करे और इसका ध्यान रखे कि सहयोगियों को पूरा सम्मान मिले। सूत्रों के अनुसार हाल में ही लोजपा कार्यकारिणी की बैठक में यह तय हुआ है कि देश में अगर कहीं भी कोई घटना होती है तो लोजपा खुलकर बोलेगी। अगर वहां भाजपा सरकार हो तो भी। रालोसपा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल भले ही चुप हैं लेकिन पिछले दिनों में वह कई बार नाराजगी जता चुके हैं। यानी भाजपा फिलहाल दबाव में है।
माना जा रहा है कि जल्द ही राजग नेताओं की बैठक बुलाई जा सकती है। उन्हें यह संदेश देने की कोशिश होगी कि दो उपचुनाव के नतीजों को लेकर किसी फैसले पर न पहुंचे। उन्हें यह आश्वस्त किया जाएगा कि सहयोगी दलों को पूरा सम्मान मिलेगा और 2019 के चुनाव में सरकार भी भाजपा की ही बनेगी। वैसे यह भी माना जा रहा है कि भाजपा कर्नाटक चुनाव का इंतजार कर रही है जहां उसे सत्ता में आने का भरोसा है। अगर ऐसा होता है तो सहयोगी दलों के दबाव से बाहर आने का भी अवसर मिलेगा और विपक्ष के कथित गठबंधन की गांठ भी ढीली पड़ेगी।
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